“लाग्यो भात्त को कोट, ओट गिरिराज छिपाने।"
यद्यपि अन्नकूट व छप्पन भोग का प्रचलन श्रीवल्लभाचार्य के समय से ही प्रारम्भ हो गया था किन्तु इसका विशाल रूप गुंसाईजी ने प्रचलित किया, जब उन्होंने संवत् 1615 में प्रथम बार श्रीनाथजी का प्रथम छप्पन भोग किया। संवत् 1640 में उन्होंने गोकुल में वृहत् छप्पन भोग का आयोजन किया। छप्पन भोग में षट्ऋतुओं के सभी मनोरथ होते हैं, अर्थात् 6 ऋतुओं के अनुसार भोज्य सामग्री तैयार की जाती है। प्रभु श्रीकृष्ण को छप्पन भोग अत्यन्त प्रिय होने से समस्त ब्रजवासी पूर्ण मनोयोग से इसका भोग प्रभु ब्रजवासी पूर्ण मनोयोग को समर्पित करते हैं।
वास्तव में छप्पन भोग, भोगों केमाध्यम से भक्त द्वारा अपनी भोग कामनाएं, प्रभु के चरणों में अर्पित कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है। यह मार्ग भोग का न होकर अपितु का त्याग है।